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भारत कि राजनैतिक यात्रा 1947 से 2019, देश ने अब तक 15 प्रधानमंत्री देखे है

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भारत की जनता अतिभावनावादी रही है, आज भी हम कोरा आधुनिकता का ढोंग करते है लेकिन हमारी मानसिकता जो की त्यों बानी हुई है. शायद हम अतीत को जोर से पकडे रहते है, यह छूटता नहीं इसलिए हम वर्तमान में स्थित होकर भविष्य की संकल्पना करने में असमर्थ है.

जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक, इनमे से कुछ ही प्रभावशाली रहे है बाकि सभी नाममात्र ही PM पद कि औपचारिकता को निभा पाए. मेरे आंकलनके अनुसार यहां मुख्यत 5 नेताओं में कुछ प्रतिस्पर्धा रही है. लेकिन यह भी वास्तविकता है कि किसी भी सत्तारूढ़ व्यवस्था का प्रभाव समय एवं परिस्थितियों अनुसार ही होता है.

1.जवाहर लाल नेहरू

पहले जवाहर लाल नेहरू जिन्हें आजादी के बाद देश का नेतृत्व करने का मौका मिला जब देश एक नई ऊर्जा से संचालित होने कि तेरे कर रहा था तब जवाहर लाल नेहरू ही नेतृत्व कि भूमिका में थे, भारत दिनिया के सामने एक पहचान बनने के लिए आतुर था, जनता में आजादी का जोश था, लेकिन सत्ता केवल औपचारिकता ही पूर्ण कर रही थी. प्रथम प्रधान मंत्री होने के नाते ही नेहरू प्रसिद्ध हुए समकालीन औपचारिकताओ को ही पूर्ण किया गया शायद यह कहना सही होगा कि वह औसत ही कर पाए, कश्मीर पर कोई बड़ा फैसला न कर सके, समाज को वही से नयी दिशा मिलनी थी समाज में जागरूकता कि उस समय अत्यंत आवशकता थी जिसमे वह असफल रहे, वो कश्मीर समस्या का भी हल निकलने में रूचि न रख सके जो आज तक एक कैंसर बना हुआ है. वो दिशा न दे सके देश को जिसपर चलकर भारत आज सर्वोच्य शिखर पर होता.

2. लाल बहादुर शास्त्री

दूसरे थे लाल बहादुर शास्त्री जी जिन्होंने शायद जय जवान जय किसान का नारा देने के अलावा कोई प्रभावशाली कदम न उठाया लेकिन पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान सेना और देश के लोगों का हौंसला बढ़ाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. एक तरह देश को उम्मीद कि किरण नजर आ रही थी जनता जोश में थी कि शायद वो देश को आगे लेकर चलते, लेकिन अचानक से ताशकन्द में उनकी रहस्मय मृत्यु से देश कि फिरसे उम्मीद टूटी.

3. इंदिरा गांधी

तीसरा नाम स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी का है, शायद इन्हे भारतीय राजनीती का सबसे प्रभावशाली चेहरा कहना गलत न होगा. इन्होने गरीबी हटाओ के नारे से गरीब जनता में उम्मीद तो जगाई लेकिन गरीबी थी कि हटने को तैयार न थी एक विशन जनसमूह का पोषण करना वह भी शिक्षा स्वास्थ्य एवं समृद्धि से बड़ी चुनौती थी. खैर यहाँ से ही भारत ने थोड़ी बहुत चल पकड़ी जिसके सहारे आज देश यहाँ तक पंहुचा है. वहीं पाकिस्तान को 1971 के युध्द में जब अमेरिका ने भारत के ख़िलाफ़ अपने जंगी जहाज तक भेज दिया था उन परिस्थितियों में भी किसी दबाव में न झुककर पाकिस्तान को 2 टुकड़ों में बांट देने का अदम्य सहस दिखाया था लेकिन 1975 में देश मे इमरजेंसी थोप कर भारत के लोकतंत्र का गाला घोटा गया. जिसका परिणाम जनता एवं राजनीती दोनों को भुगतना पड़ा, देश ने जो रफ़्तार पकड़ी थी वह फिरसे डूबता सूरज कि भांति एक काली शाम में बदल गयी.

4. राजीव गाँधी

चौथे है राजीव गाँधी. राजीव गाँधी आजतक के इतिहास में सबसे अधिक पढ़े लिखे नेता रहे है लेकिन राजनीती के पायदान पैर उन्हें भारत की राजनैतिक परिस्थियों का कोई ज्ञान न था. राजीव गांधी जिस माहौल में पी एम बने उसे देखकर इन्हे PM by chance कहा जाता है. फिरभी राजीव गांधी को इसका श्रेय जाता है उन्होने देश में सूचना क्रांति पहले की पहल कि. भारत में कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी राजीव गांधी के समय में ही उपजी है. इस विषय में उन्हे देश को एक नयी दिशा देने का श्रेय प्राप्त है. लेकिन अर्थव्यवस्था और सामजिक संतुलन में कोई विशेष भूमिका न रही. अंततः राजीव गाँधी कि मृत्य हो गयी. बस इतना कह सकते है कि देश समय के साथ चलता रहा इन कठिन रास्तो पर.अब यह जैसे भी रास्ते थे अच्छे बुरे भारत को इन्ही से होकर गुजरना था. फिरभी आज देश जहा भी है राजनैतिक रूप से इन चार प्रधान मंत्रियो कि लाशो पर खड़ा है.

यह अध्यन मेरे लिए रोमांच से भरा हुआ था. बहुत गहरे विषय समझने का मौका मिला लेकिन यह बस मुख्य मुख्य बिंदु ही प्रदर्शित कर रह हूँ. सबका योगदान समय और परिस्थितियों अनुसार था. मैं सही और गलत कुछ नहीं कह सकता इस पूर्ण अध्यन के बाद.

नरेंद्र मोदी

अब पांचवे है वर्तमान PM नरेंद्र मोदी, जब हम इनका आंकलन करते है तो पाते है कि नरेंद्र मोदी सभी पांचो में सबसे आगे है. वैसे मैं एक नागरिक तौर पर इनका और नेहरू का विरोधी हूँ लेकिन राजनैतिक पायदान पर यह एक अत्यंत सफल नेता है. 2014 में जनता ने इन्हे अत्यंत प्रेम दिया जनता को इनसे ठीक वही उम्मीदे थी जो आजादी के बाद नेहरू से थी, बल्कि उससे भी बढ़कर. जब भी मैं नेहरू और मोदी जी का आंकलन एक साथ करता हूँ तो बहुत कुछ कुछ समानताये मिलती है. नेहरू ने कई बार यह बात कही है कि ” मैं एक विकसित भारत का सपना देखता हूँ” वैसे ही मोदी जी ने भी विकास या सबका साथ सबका विकास का नारा दिया. यह दोनों संयोग कि बात है. यह भी आसचर्य है कि पहले प्रधान मंत्री से लेकर अभी तक बात विकास पर अटकी हुई है. यह तो प्रत्येक व्यक्ति चाहेगा कि विकास हो लेकिन शायद मोदी जी खुजली मिटाने के चककर में घाव कर बैठे जो भविष्य में नासूर बनकर उभरेगा. लेकिन तब तक मोदी जी पूर्व प्रधान मंत्रियो कि भांति इतिहास हो जायेंगे. परिणाम केवल देश को भुगतने पड़ेंगे. यही परिणाम देश ने तब भी भुगते थे जब इंदिरा गाँधी ने इमर्जेन्सी लागु कि थी. वैसे ही भयानक परिणाम नोटबांधि में भुगतने पड़े लेकिन उनका रूप अलग था. आश्चर्य कि बात यह है कि जब भी राष्ट्रिय स्तर पर कोई ऐसी घोषणा होती है तो जनता को उसके भयानक परिणाम भुगतने पड़ते है. फिर भी न जाने क्यों ऐसा दुराचारी निर्णय सरकार लेती है.

मोदी जी का 2014 के चुनाव में मुख्य मुद्दे भरष्टाचार एवं किसान आय था, देश में घोटालो का बोलबाला जारी था, जनता तत्कालीन सरकार को बदलना चाहती थी , ऐसा बार बार होता रहता है. देश घोटालों की मार से झेल रहा था. जनता कुछ निराशा महसूस कर रही थी, लेकिन यह तो जनता का दुर्भाग्य है कि निराशा ही उसके हिस्से आती है. तब नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी और GST जैसे कदम उठा कर अदम्य साहस का परिचय दिया, फिर से देश को नयी दिशा देने कि कोशिश कि. में इनको साहस का परिचय इसलिए कहूंगा क्योंकि भारतीय राजनीति में आजादी के बाद यह पहला कोई परिवर्तन का कदम था.

(मुझे ज्ञात है कि मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ उसदिन नैनीताल में था. यह खबर चारो और आग कि तरह फ़ैल रही थी. हमे इस खबर को सुनते ही बहुत ख़ुशी हो रही थी. हालाँकि बहुत सी परेशानिया हो रही थी क्योकि कोई 500 और 1000 के नॉट ले ही नहीं रहा था. लेकिन एक अलग ही जोश था कि कुछ बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है फिर लोगो को समझाया कि अभी आप कुछ समय तक अपने नोट बैंक में डाल सकते है तब जाकर किसी रेस्टोरेंट में खाना नसीब हुआ. यह बहुत ही अनोखा अनुभव था.)

लेकिन बाद में जब इसके परिणाम सामने आये तो पता चला कि सरकार का यह फैसला पूरी तरह से निरर्थक था. हजारो लोगो कि जाने चली गयी, किसी काले धन का तो पता नहीं लेकिन हवाला मार्किट मतलब ब्लैक मनी कि मार्किट उसके बाद 45 %तक बढ़ गयी. अंत में RBI कि रिपोर्ट में भी यह नाकामयाबी साबित हुई.
साथ ही नोट बंधी के बाद एकसाथ GST लागु करने से भी हजारो छोटे उद्योगों पर प्रभाव पड़ा और लाखो लोगो बेरोजगार हुए. GST अच्छा कदम है लेकिन उसके लिए सही समय का होना जरुरी था. अगर ऐसा होता तो मोदी जी वह वही लूटते. लेकिन हुआ इसके विपरीत ही.

आज पूरे विश्व मे तो मोदी जी ने भर्मण कर अपनी पहचान बनायीं उनकी कुशल विदेशनीति भी उत्तम है वही देश के भीतर लगभग पिछले पांच साल के कार्यकाल में न तो कही विकास देखने को मिला न ही भविष्य कि कोई उत्तम संकल्पना सरकार ने देश को दी. जहा आज भारत को विकास के रास्ते पर उड़ान भरने को तैयार था क्योकि दूसरे विकसित देशों की तुलना में अभी लम्बी छलांग देश को लगनी है. जिसके लिए मोदी जैसे कुशल नेता कि आवशकता थी. लेकिन मोदी जी एवं बीजेपी सरकार – केवल ढोंग, पाखंड, मतभेद,सामाजिक मतभेद, जाती पाती, और बड़े बड़े पूंजीपतियों कि रखैल बनकर रह गयी. विकास के नाम पर सरकार तो बानी लेकिन विकास बोना हो गया जो कही न दिखा. जनता को आज भी वैसी ही उम्मीद है जैसी नेहरू के समय में थी और नेहरू ऐसे ही है आजभी जैसे आजादी के बाद थे.

आज न भविष्य कि योजना है या वर्तमान का आधार,
कभी हम सरकार बदलते है कभी बदलते है सरकार.

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